Tuesday 18 November 2014

सपने: अपने या अपनों के???

लोग कहते हैं फलाना बीमारी सबसे खतरनाक है, फलाना आदत बहुत खतरनाक है और भी ना जाने क्या-क्या कहते हैं लोग. पर मुझे लगता है और पाश ने जो कहा है “सबसे खतरनाक होते है हमारे सपनों का मर जाना”. ये एक ऐसी मृत्यु होती है जिसका गम सिर्फ हम और हमारी अंतरात्मा ही मेह्स्सोस कर सकते हैं. सपनों की मृत्यु के बाद एक अजीब सी घुटन और एक अजीब सी बेबसी का आभास होता है. मैंने बहुत कोशिश करी की लोगों को अपने सपनों का गला दबाने की श्रेय न दूँ पर ऐसा होना सका.
कुछ अपनों  के समक्ष जब मैंने ये बातें करी तो उन्हें लगा की ये किसी बुरी संगत का असर है. कैसे बताती उन्हें की ये सब उन्ही के लिए हुए फैसलों का परिणाम है? शायद जो लोग जिन को मैं दोष दे रही हूँ वो मेरे अपने ही हैं. इन्ही अपनों ने मेरे खवाबों की, मेरे कीमती सपनों की हत्या की है. क्या मेरे अपने ही मेरे खवाबों के गुनेहगार हैं? या मैं अब इतनी कमज़ोर हो गयी हूँ की मैं अपनी इस हालत का जिमेदार किसी और को ठेरा रही हूँ?  
बेराल जो भी हो धरती पर पुरे 18 साल बिताने के बाद ये तो पता चल गया की अगर कोई चीज़ है जो सबसे खतरनाक, सबसे ज्यादा दर्द पहुचने की शमता रखती है वो है हमारे अपने अनमोल कीमती सपनों की मृत्यु!
मैं पूरे संसार मे रहने वाले हर एक इंसान से बस एक ही आगरेह करना चाहती हूँ की चाहे कुछ भी हो जाये अपने सपनों को मरने मत दीजियेगा. क्यूंकि इस ज़ख़्म को भरने के लिए कोई दावा नहीं है और ये एक ऐसा घाव जो वक़्त के साथ और गहरा ही होता है.
सपने देखिये और उन्हें पूरा कीजिये!!! :)


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