Tuesday 31 May 2016

यलगार हो!

कितनी अजीब बात है, की तुम जो चाहते हो वो मैं बन नहीं पाई | तुम जो देखते हो वो भी मैं हूँ नहीं और जो तुम देखना चाहते हो वो भी नहीं हूँ मैं | पता नहीं क्या हूँ, कौन हूँ कुछ हूँ या फिर कुछ हूँ भी या नहीं |
तुम अपनी जिद्द चद नहीं सकते और मैं अपनी लड़ाई से मुंह मोड़ नहीं सकती | शायद हम दोनों एक ही असमंजस में  हैं |  तुम्हे लगता है की तुम्हारी जीत में मेरी  हार होगी या फिर ये  लगता होगा की मेरी जीत में तुम्हारी हार है | मुझे हमेशाकी तराह तुमसे कुछ अलग लगता है, मुझे यह लगता है की जिस दिन मेरी हार पे तुम्हे गर्व होगा, जिस दिन तुम मुझे उस हार जीत के आलावा देखोगे उस दिन मैं हर लड़ाई, हर जंग जीत जाउंगी | 
मेरी लड़ाई मेरी जिद्द नहीं ज़रुरत है, शायद तुम्हारी जिद्द तुम्हारी ज़रुरत हो | पर ये बात तो माननी ही पड़ेगी की ना तुम बदलोगे ना मैं |
किस्मत आज तुम्हारे साथ है शायद कल पलट के किसी और की तरफ चली जाये, चिंता मत करो मेरी तरफ नहीं आएगी क्यूंकि किस्मत अच्छे लोगों की मोहताज होती है और मुझे अच्छाई और मोहताजों दोनों ही पसंद नहीं हैं |
जब तक हम दोनों हैं तब तक इसी आग में हमारे सपनों की आहूति चढ़ेगी ही | अब तो ये आग भी मेरी दोस्त है,  इसमें जल कर राख होते हुए अपने अज़ीज़ खवाबों और अपनेअकेलेपन को पनपते देखा है |
तुम जो कर सकते हो करो मुझे जो करना है वो तो मैं करके ही रहूंगी |

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