Sunday 3 July 2016

वक़्त और भरोसा!

सुना है वक़्त
सबका आता है
शायद गलत सुना हो
पर भरोसा तो
मैं तब भी कर ही लेती हूँ
क्यूंकि भरोसा तो
मैं हर बात पर बस यूँ हीं
कर ही लेती हूँ

वैसे,
भरोसा तो तुम
पर भी किया था
तुमने तो खैर,
तोड़ दिया,
पर अब मैंने
ये भरोसे की
नयी उम्मीद
इस वक़्त से
लगायी है

उस वक़्त से
जो अभी तो
मेरा नहीं है
पर शायद कभी
मेरा हो जायेगा

वो मैंने कहीं
बस यूँ हीं सुना है
कि वक़्त और मौत
सबकी आती है
बस अब देखना इतना है
कि पहले कौन आता है
वक़्त या मौत

मैं चाहती तो
दोनों ही हूँ
पर,
बस एक बार
एक बार, सिर्फ
वक़्त को मौत
से पहले ज़रा सा
सराहना चाहती हूँ

क्या इस बार
ये वक़्त
मेरी सुनेगा
या करेगा अपनी
वही पुरानी मन मानी
इसी का जवाब
ढूँढने मे
कट - गुज़र जाएगी
मेरी ज़िन्दगी की
ये कहानी 

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