Monday 10 June 2019

साझेदारी नहीं, समझदारी!

सही कहते हैं वो
जो मुझे बेवक़ूफ़
और नासमझ कहते हैं .

मैं नासमझ ही हूँ
क्यूंकि जब सब
समझदारी को पाने
के लिए दौड़ रहे थे
मैं रिश्तों की
मिठास और साझेदारी की
चादर ओढ़ कर
सो रही थी.

आज फिर एक बार तुमने
सिखा, दिखा, और समझा दिया
कि रिश्ते साझेदारी नहीं
समझदारी से निभाये जाते हैं.

चलो, कोई बात नहीं
तुम तो खैर हो ही समझदार
मैं ठहरी नासमझ और बेवक़ूफ़
तुरी एक आवाज़ पर दौड़ी
चली आने वाली.

खैर, कोई नहीं
एक बार आज फिर तोड़ दिया
तुमने वो जो
मैंने इतने मुश्किल से जोड़ने
की तमाम नाकाम कोशिशें
करीं थी.

हाँ, हाँ
वही दिल जिसे अब
तुम्हारी आदतों और हरकतों
की वजह से अब
टूटने की आदत ही
हो गयी है.

अगर फिर कभी
लगे की ज़रुरत है
मेरी या मेरी साँसों
तो फिर याद कर लेना
मैं फिर आ जाउंगी .

और फिर तुम्हे अपने आप
अपना दिल और अपनी जान
देने के लिए तैयार हो जाउंगी.

तुम फिर ले लेना
जो चाहो
मैं तो वैसे भी
बेवक़ूफ़ ही हूँ.

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