Tuesday 4 April 2017

कुछ अलफ़ाज़, बस यूँ ही -16!

पहले पानी प्यास बुझाता था, अब आंसुओं ने पानी की अहमीयत ही खत्म कर दी और प्यास अपने आप ही मर गयी.
--------
क्या तुम्हें मेरी बातों में अपने लिये इंतजार महसूस नहीं होता?
क्या तुम्हें मेरी बेचैनी में अपनी चिंता नज़र नहीं आती?
---------
बात तो तुम में ज़रूर कुछ है,
जो तुम मुझे मेरे ही इज़हार में
मेरी खुद की हार दिखा देते हो।
-------
ख़ासियत है ग़म की, हमेशा अकेला ही आता है.
ना ख़ुशि का साया ना उम्मीद की किरण.
-------
तन्हाई से रिहाई की भीख माँग कर भी अब थक चुकी हूँ.
---------
समझ तो ख़ैर नहीं पायी हूँ
लेकिन फिर भी 
बस इतना जान गयी हूँ 
की ज़्यादा प्यार और घुटन 
में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं होता 
-------
लगता है इस खेल में नए हो,
इसीलिए शायद 
मोहब्बत से क़ायदे की
और वक़्त से भरोसे 
की उमीद पाल रहे हो 
--------
हर रास्ते को मंज़िल मिल जाए ये ज़रूरी नहीं
लेकिन, हर मंज़िल का रास्ता तो होता ही है 
--------
अब तो नींद की फ़ितरत भी इंसानों जैसी हो गयी है,
जब मन करता है तब दग़ा दे जाती है।
------
अधूरी अर्ज़िश का नाम ही शायद ख़्वाहिश है।


No comments:

Post a Comment