Saturday 9 September 2017

कहो की सुना है!

कहो की सुना है
कहो की सुनना चाहते हो
कहो की वक़्त है
और तुम उसे बाँटना चाहते हो
कह दो. कहना ही तो है.

मैं मान जाऊँगी
हर बार की तरह
इस बार भी
बेवक़ूफ़ बन जाऊँगी.

तुम्हें तो बस कहना है
पर हर ज़ख़्म तो
मुझे अकेले ही सहना है
तो तुम कह दो.

दो पल की सही
ख़ुशी तो मिलेगी
एक पल का सही
चैन तो आएगा.

ज़ंजीरें तोड़ते और
आज़ादी के ख़्वाब
देखते अब काफ़ी
वक़्त हो गया है.

दिल के चीथडों
और दिमाग़ के टुकड़ों
पर ज़िंदगी सिमट
सी गयी है.

पर अब ना तुम
बहलाते हो ना बहकाते हो
ना कहानी ना क़िस्से सुनाते हो
क्या तुम भी अब
कुछ कह नहीं पाते हो?

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