Monday 25 September 2017

सुना है की तुम!

सुना है की तुम
इस ख़ुश रहने की तलब में
अंधे हो गए हो
सुना है की तुम
अपने आप को ढूँढने की हवस में
अंधे हो गए हो.

सुना है की तुम
अपनी आवाज़ को सुनने
से पहले ही सहम गए हो
अपने आपको पहचानने के ख़याल से
ही कुछ डर से गए हो. 

सुना है की तुम
आजकल देखने, सुनने, चाहने
से पहले ही एक ना ख़त्म
होने वाली दौड़ में
कुत्तों की तरह
चीते से तेज़
भागने लगे हो.

सुना है की
अब तुम सुनते नहीं
सिर्फ़ सुन होते हो,
बस,
इतना ही सुना है
मैंने अपने दिल से
अपने ज़मीर के लिए
और दिमाग़ के ख़िलाफ़.

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